गर्मियों के मौसम में सर्वाधिक पसंद किया जाने वाला फल तरबूज माना जाता है । तरबूज के कच्चे रूप का इस्तेमाल लोग सब्जी बनाने के लिए भी करते हैं। तरबूज शरीर में रक्तचाप को संतुलित रखता है, एवं गर्मियों में लू लगने से आपको बचाता है । भारत में बड़ी मात्रा में तरबूज की खेती की जाती है । कर्नाटक पंजाब हरियाणा राजस्थान मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश और गुजरात राज्यों में मुख्य रूप से तरबूज की खेती की जाती है। जिस में सर्वाधिक मात्रा में लगभग 90% पानी की मात्रा पाई जाती है । राजस्थान में तरबूज को मतीरा और हरियाणा में इसे हदवाना नाम से जानते हैं।
तरबूज की खेती कैसे होती है ?
किसान को जिस खेत में तरबूज की खेती करनी होती है। उस खेत की हल से जुताई की जाती है । जुताई करने के लिए किसान हल या कल्टीवेटर का प्रयोग कर सकते हैं । खेत में पानी की मात्रा संतुलित होनी चाहिए । उसके बाद खेत में क्यारिया बनाई जाती हैं, और भूमि में गोबर की खाद हो अच्छी तरह से मिला दिया जाता है । अगर खेत में रेत की मात्रा अधिक होती है , तो मिट्टी की ऊपरी सतह हटाकर मिट्टी में उत्तम कोटि की खाद में लाई जाती है।
तरबूज की खेती के लिए दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है इसके लिए भूमि का ph मान 5.5 से 6.5 के बीच में होना चाहिए।
तरबूज की किसमें बाजार में तरबूज के बीज की कई प्रकार की प्रजातियां देखने को मिलते हैं किंतु किसान केवल अच्छे किस्म के बीजों को ही खरीदना चाहिए ताकि अच्छी मात्रा में तरबूज का उत्पादन हो सके और अधिक मुनाफा कमाया जा सके जिसमें प्रमुख हैं -
आशाई यामातो
पूसा बेदाना
शुगर बेबी
दुर्गापुरा केसर
अर्का ज्योति
अर्का मानिक ।
तरबूज के बीज की बुआई की विधि ?
तरबूज का पौधा शुष्क जलवायु में तैयार किया जाता है । जिसकी वजह से इसकी खेती का मात्र आद्रता वाले प्रदेशों में आसानी से हो जाती है। तरबूज का पौधा अधिकतम 40 डिग्री और न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को सहन कर सकता है। तरबूज की खेती के लिए तरबूज के अच्छे किस्मों के बीज और भूमि की उर्वरता को देखकर बुआई की जाती है । तरबूज की बुआई की मेड़ों में लगभग 2.3 से 3.0 मीटर की दूरी पर 50 से 55 सेंटीमीटर चौड़ी नाली बनाकर करते हैं। इसके बाद नालियों के दोनों किनारों पर 60 सेंटीमीटर की दूरी रखकर दो से तीन बीज बो दिए जाते हैं बुआई के कुछ दिन बाद जब बीज अंकुरित होने लगते हैं उसके 10 15 दिन बाद एक जगह पर एक या दो स्वस्थ पौधों को छोड़कर बाकियों को निकाल देना ही उचित माना जाता है।
तरबूज की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन -
तरबूज की खेती में सिंचाई को बुवाई के लगभग 15-16 दिन बाद करना चाहिए । खेती जब नदियों के किनारे की जाती है, तो सिंचाई की आवश्यकता उसमें कम पड़ती है , क्योंकि पौधों की जड़े मिट्टी के नीचे से पानी को सोखकर पोषण प्राप्त कर लेती हैं । मैदानी या शुष्क क्षेत्रों में की गई तरबूज की खेती के लिए सिंचाई की जरूरत ज्यादा होती है । ऐसे क्षेत्रों में पहली सिंचाई को रोपने के तुरंत बाद कर दिया जाता है,और दूसरी तीन-चार दिन बात करते हैं । जब बीज अंकुरित होकर पौधा बनने लगता है, तब इस पौधे को प्रति सप्ताह पानी देना पड़ता है।
तरबूज की तूड़ाई करना ?
तरबूज के फलों की बुवाई करने के दो-तीन महीने बाद फलों को तोड़ सकते हैं । जैसा कि आप जानते होंगे, कि जिस प्रकार की किस्म के बीजों को बोया जाता है । उसी प्रकार का फलों का आकार एवं रंग निर्भर करता है । आप फल को दबा कर देख सकते हैं ,कि फल पक गया है या कच्चा है । अगर फलों को किसी दूर स्थान भेजना होता है , तो फलों को पहले ही तोड़ लिया जाता है। और किसी ठंडे स्थान पर रख कर एकत्र करते हैं ।
तरबूज का भंडारण ?
तरबूज को खेतों में से तोड़ने के बाद 1 महीने आराम से रखा जा सकता है। तरबूज का फल काफी भारी होता है, इसलिए उसके गिरने से उसके टूटने का डर रहता है ।इसीलिए उसे ध्यान पूर्वक रखा जाता है । फलों को 2 से 5 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखते हैं , जिससे वह अधिक समय के लिए स्टोर किए जा सके।
तरबूज की खेती की पैदावार एवं लाभ ?
तरबूज की पैदावार उस की उन्नत किस्मों , खाद ,उर्वरक ,फसल ,मिट्टी पर निर्भर करती है ।
एक हेक्टेयर के खेत में औसत पैदावार लगभग 200 से 600 कुंटल प्राप्त हो सकती है। तरबूज का बाजारी भाव 10 -15 प्रति किलो होता है । जिससे किसान को एक बार की फसल के 3 - 4 लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती है।
तरबूज के पौधे में लगने वाले रोग ?
तरबूज की खेती में कई तरह के कीड़े लग जाते हैं। जिससे तरबूज की पौध खराब हो जाती है ।
फल की मक्खी - एक तरह का कीट होता है , जिससे पौधे की पैदावार प्रभावित होती है । यह तरबूज के फल में छेद कर देता है। और अंदर से फल बुरी तरह से बेकार हो जाता है ।
प्यूजेरियम बिल्ट - इस रोग से पूरा पौधा नष्ट हो जाता है । यह रोक पौधे की किसी भी अवस्था में हो सकता है ।
बुकनी रोग- इस किस्म के रूप से पौधों की पत्तियों का रंग सफेद हो जाता है । जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है । यह पौधे की पैदावार को कम करता है,
एवं वृद्धि को हानि पहुंचाता है।
कोमल फफूंदी - इससे पौधों में फफूंदी लग जाती है । हल्के पीले और भूरे रंग के धब्बे देखे जाते हैं। यह बहुत ही सूक्ष्म जीव होते हैं, जो बारिश के समय में पौधे पर आकर पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं ।
पाउडरी फफूंदी- यह फफूंदी की प्रजाति होती है । जिससे पत्तियों पर सफेद पाउडर जैसी फफूंदी दिखाई देती है । यह वाहिकाओं के रूप में पूरे पौधे में फैल जाती है ,और पत्तियां भूरे रंग के होकर अंत में झड़ जाती हैं।
तरबूज के पौधे में होने वाले रोग की रोकथाम ?
तरबूज की पौध को रोगों से बचाने के लिए बाजार में विभिन्न प्रकार के कीटनाशक दवाएं उपलब्ध होती हैं जिसमें कर्बरील , मेलाथियान, एंडो सलोन , डाइनोकेप,जाइनेब ,मैकोजेब,
कार्बेंडाजिम एवं कैप्टान आदि ।
संयुक्त राष्ट्रीय खाद्य और कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में दुनिया में सबसे ज्यादा तरबूज का उत्पादन चीन ने 67.78 फ़ीसदी किया था । उसके बाद तीसरे नंबर पर भारत का नाम आता है । भारत मे 27.78 फीसदी उत्पादन हुआ था । 2020 21 मई 115 हजार हेक्टेयर में तरबूज की खेती की गई थी ।