चने की खेती की जानकारी हिंदी में
वानस्पतिक नाम Botanical Name - साइसर ऐरीटिनम cicer arietinum
कुल फैमिली - लेग्यूमिनेसी Leguminaceae
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ऐसे करें चने की उन्नत खेती होगा अधिक लाभ cultivation of gram |
चने की खेती का महत्व Importance
पोषण की दृष्टि से दलहनों को गरीबों का मांस ( poor man's meat ) कहा जाता है, क्योंकि इसमें धान्य की तुलना में लगभग 21.1% प्रोटीन, 4.5% वसा एवं 61.35% कार्बोहाइड्रेट पायी जाती है। इसके साथ-साथ दलहनों में पाई जाने वाली प्रोटीन के अमीनो-अम्ल के संगठन में यह विशेषता होती है कि यदि दलहन को धान्य के साथ मिलाकर भोजन में लिया जाये तो भोजन का जैविक महत्व बढ़ जाता है।
चना को दालों का राजा ( the king of pulses ) कहा जाता है। इसका आटा चपाती, कढ़ी ( बेसन ) , नमकीन, मिठाइयां तथा अन्य खाद्य-पदार्थों में प्रयोग होता है। इसके पौधे की हरी पत्तियां मैलिक अम्ल ( malic acid ), ऑक्जेलिक अम्ल ( oxalic acid ) आदि के कारण नमकीन लगती हैं, अतः चने के पौधों का सूखा चारा पशुओं को खाने में स्वादिष्ट लगता है।
चने का उत्पत्ति स्थान Origin
चने के जन्म स्थल के बारे में वैज्ञानिकों के भिन्न-भिन्न मत हैं। डी-कण्डोल के अनुसार चने का जन्म स्थान भारत ही है। कुछ वैज्ञानिक अफगानिस्तान, दक्षिण पश्चिमी एशिया को चने का जन्म स्थान मानते हैं।
क्षेत्रफल एवं वितरण Area and distribution
संसार में इस फसल का क्षेत्रफल लगभग 10.54 मिलियन हेक्टेयर है तथा लगभग 31 देशों में, मुख्य रूप से एशियाई देश अफ्रीका, यूरोप आदि में यह पैदा किया जाता है। भारत में लगभग 73 मिलियन हेक्टेयर भूमि में 48 मिलियन टन चने का वार्षिक उत्पादन है।
चना भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में मुख्य रूप से उगाया जाता है। मध्यप्रदेश राज्य में ग्वालियर, मालवा तथा जबलपुर संभाग में चने की खेती अधिक क्षेत्रफल में की जाती है।
चने की खेती के लिए आवश्यक जलवायु climate
चने की खेती के लिए 85 से 95 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं। चने की फसल में पाला अधिक हानि पहुंचाता है। चने के अंकुरण के समय 15-25°C तापक्रम, पौधा बढ़ने के लिए साधारण ठंडा मौसम तथा पत्ते समय उच्च तापक्रम 25-30°C की आवश्यकता होती है।
चने की उन्नतशील किस्में Improved varieties of gram
पंत जी - 114, राधे, पूसा - 256, सदाबहार - 13, पूसा - 207, पूसा - 408, गौरव - BG-203, KGD-1168, विश्वाश - T-3
काबुली चने की किस्में - L - 550, L - 114, C - 104
विभिन्न प्रांतों के लिए चने की उन्नतशील जातियां
उत्तर प्रदेश - पूसा-203, पूसा-209, गौरव, जी-130, उदय, T-3, H-208
हरियाणा - अजय, पूसा-372, अमर, गौरव-H-208, C-214
राजस्थान - T-3, उदय, अजय-C-235, पूसा-212, C-104
बिहार - पंत जी - 104, पूसा-240, V.R-65, H-208, C-104, N.P.-2
मध्य प्रदेश - JG-62, T-3, राधे, पूसा-209, उज्जैन-21, JG-74, JG-315, पूसा-256
पंजाब - C-235, G-130, GNG-146, BG-26, गौरव
दिल्ली - BG-203, G-261, BGM-408, GNG-146, गौरव
गुजरात - BG-203, BG-244, JG-315
हिमाचल प्रदेश - C-235
महाराष्ट्र - विकास, N-59, BG-244, JG-35, BGM-417
आन्ध्र प्रदेश - ज्योति, JG-62, BDN-93
तमिलनाडु - CO-1, CO-2
पश्चिमी बंगाल - B-108, B-110, B-124, महामाया-1 व 2
उकटा ( wilt ) अवरोधी की प्रजातियां - RS-42, BG-275, G-24, ICCC-32 ( काबुली चना )
सूखा सहन करने वाली किस्में - T-3, T-87, G-24, RS-10
ब्लाइट ( झुलसा ) अवरोधी प्रजातियां - C-235, BG-261
देर से बोई जाने वाली प्रजातियां - पंत जी - 114, C-235, JG-74
काबुली चने की प्रजातियां - K-4 ( सफेद ), K-5 ( हरा ), L-550, C-104, ICCC-32 आदि
भूमि soil
चने की खेती के लिए बालुई दोमट मिट्टी से लेकर मटियार दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। बुंदेलखंड की मार व पड़वा मृदाऐं अच्छी समझी जाती हैं। चने की फसल के लिए खेतों में जल-निकास की उचित सुविधा होनी चाहिए। चने की खेती के लिए भूमि का PH मान 5.5 से 8.5 के मध्य होना चाहिए।
खेत की तैयारी Field preparation
चने के लिए कुछ ढेलेदार भूमि अच्छी रहती हैं, जिसमें वायु संचार अच्छा व जीवाणु भली-भांति क्रियाशील रहते हैं। चना की खेती के लिए खेत की मिट्टी को बहुत ज्यादा महीन या भुरभुरी बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। खेत की तैयारी के लिए खरीफ फसल की कटाई के बाद दो-तीन जुताईयां देशी हल से कर देनी चाहिए, उसके बाद खेत को समतल करने के लिए पाटा या पटेला चला देना चाहिए।
चने की खेती का समय ( बुवाई का समय ) time of sowing
असिंचित क्षेत्रों में ( कम पानी वा ले क्षेत्रों में ) चने की बुवाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह तक कर देना चाहिए।
चने की बुवाई करने में अधिक देरी नहीं करनी चाहिए अन्यथा चने की पैदावार पर गहरा प्रभाव पड़ता है। और अब फसल में रोग एवं कीटों का प्रकोप ज्यादा पड़ता है। अतः अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में चने की बुवाई अच्छी मानी जाती है।
बीज-दर seed rate
देशी चने की बुवाई के लिए 70 से 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
मध्यम आकार वाली किस्मों के लिए बीज 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
काबुली चने की बुवाई के लिए 100 से 125 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
बीज उपचार Seed treatment
रोग नियंत्रण हेतु
उकठा एवं जड़ सड़न रोग से फसल के बचाव हेतु 2 ग्राम थायरम एवं 1 ग्राम कार्बेंडाजिम के मिश्रण से प्रति किलो बीज को उपचारित करें।
या बीटा वेक्स 2 ग्राम प्रति किलो से उपचारित करें।
कीट नियंत्रण हेतु
थायोमेथोक्साम 70 डब्ल्यू पी 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
पोषक तत्व उपलब्ध कराने हेतु
जीवाणु संवर्धन : राइजोबियम एवं पी.एस.बी. प्रत्येक की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीच की दर से उपचारित करें।
100 ग्राम गुड़ को लेकर आधा लीटर गुनगुने पानी में घोल बनाना चाहिए। घोल को ठंडा करके घोल में एक पैकेट राइजोबियम कल्चर का मिला देना चाहिए।
घोल को बीज के ऊपर समान रूप से छिड़क दें और धीरे-धीरे हाथों से मिलाएं ताकि बीज के ऊपर कल्चर अच्छे से चिपक जाए।
उपचारित किए गए बीजों को कुछ समय के लिए छांव में सुखाना चाहिए।
पी.एस.बी. कल्चर से बीज उपचार राइजोबियम कल्चर की तरह करें।
मोलेब्डनम 1 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
बोआई का ढंग Method of sowing
समुचित नमी में सीडड्रिल से बुवाई करनी चाहिए।
यदि खेत में नमी थोड़ी कम है तो बीज को नमी के संपर्क में लाने के लिए बुवाई को थोड़ा गहराई में करें उसके पश्चात पाटा लगाएं।
पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 से 18 सेंटीमीटर रखना चाहिए।
खेतों में नमी होने पर काबुली चने की कूडों के बीच की दूरी 45 सेंमी. रखनी चाहिए।
हमारे क्षेत्र में छिड़काव विधि द्वारा चने की बुवाई अधिक मात्रा में की जाती है।
देरी से बुवाई करने पर पंक्ति से पंक्ति की दूरी घटाकर 25 सेंटीमीटर रखें।
खाद एवं उर्वरक Manure
चना एक फलीदार फसल है, अतः इसे नाइट्रोजन की अधिक मात्रा में आवश्यकता नहीं होती है। उर्वरकों का उपयोग हमेशा मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही किया जाना चाहिए। चना के पौधों की जड़ों में पाई जाने वाली ग्रंथियों में नत्रजन स्थिरीकरण जीवाणु पाए जाते हैं, जो वायुमंडल से नत्रजन अवशोषित कर लेते हैं तथा इस नत्रजन का उपयोग पौधे अपनी वृद्धि एवं विकास हेतु करते हैं।
चने की फसल में 20 से 25 किलोग्राम नाइट्रोजन 50 से 60 किलोग्राम फास्फोरस 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए। नत्रजन की आवश्यक मात्रा प्रदान करने के लिए गोबर या जैविक खाद का प्रयोग करना चाहिए।
चने की सिंचाई Irrigation
चने की फसल को 1-2 सिंचाई की आवश्यकता होती है। चने की फसल में पहली सिंचाई फूल आने पर तथा दूसरी सिंचाई फली बनने पर करनी चाहिए। खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए एवं सिंचाई हल्की करनी चाहिए।
चने की खेती में खरपतवार नियंत्रण Weed Management
साधारणतया चने की फसल में निराई गुड़ाई की कम आवश्यकता होती है। लेकिन फिर भी भारी भूमियों में एक गुड़ाई या निराई खुरपी की सहायता से करनी चाहिए। निराई गुड़ाई 30 से 35 दिन के भीतर करनी चाहिए। रासायनिक नियंत्रण के लिए वैसालीन की 1 किलोग्राम मात्रा 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पहले खेत में छिड़ककर मिला देते हैं।
खुटाई या शीर्ष तोड़ना Topping
जब पौधे 10 से 12 सेंटीमीटर के हो जाते हैं तो पौधों के शीर्ष को तोड़ लिया जाता है जिससे पौधों में अधिक शाखाएं निकलती हैं। इस तोड़े गए भाग को साकभाजी ( सब्जी ) के रूप में प्रयोग किया जाता है। बकरियों से भी चराई करा दी जाती है।
चने की खेती में बीमारियां Disease
चने की फसल में उकठा, झुलसा, जड़ गलन, शुष्क जड गलन आदि बीमारियां बीज या भूमि से पैदा होते हैं। इसकी रोकथाम के लिए बीजों को बोने से पहले फफूंदी नाशक दवाओं से उपचारित करके बोना चाहिए। बीजों को कैप्टान, थीरम, एग्रोसन, जी.एन. आदि 3 ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित करते हैं।
चने की खेती में कीट Insects
चने की फसल में कुतरा ( cut worm ) , फली भेदकर ( pod borer ) , मक्खी ( podfly ) आदि कीट लगते हैं। इनके नियंत्रण के लिए एल्ड्रिन या B.H.C. (10%) 20 किलोग्राम पाउडर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कना चाहिए।
चने की खेती की कटाई का समय एवं मड़ाई Harvesting and threshing
चने की फसल मार्च माह के प्रथम सप्ताह में पक कर तैयार हो जाती है। जब पत्तियां सूखने लगे तो हंसिये से इसकी कटाई कर ली जाती है। सूखी फसल को खलियान में एकत्रित करके चार-पांच दिन तक सुखाते हैं।
सूखी फसल में बैलों की दाएं चलाकर या थ्रेसर की सहायता से दाने एवं भूसे को अलग कर लेते हैं। वर्तमान समय में थ्रेसर मशीनों का प्रयोग अधिक मात्रा में होने लगा है।
उपज Yield
भारत में चने की औसत उपज 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा मध्य प्रदेश में 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। लेकिन उन्नतशील जातियों से सिंचाई की सुविधा होने पर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त हो जाती है। असिंचित क्षेत्रों में 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त हो जाती है।
चने की खेती से मिलते-जुलते कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1. सूखा सहन करने वाली चने की किस्में कौन-कौन सी हैं?
उत्तर - सूखा सहन करने वाली चने की किस्में :-
• T - 3
• T - 87
• G - 24
• RS - 10
प्रश्न 2. चने को और कौन-कौन से नाम से जाना जाता है?
उत्तर - चने को चिकपी एवं बंगाल ग्राम के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न 3. चने में कितने प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है?
उत्तर - चने में 24 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है।
प्रश्न 4. चने की हरी पत्तियों में कौन सा पदार्थ पाया जाता है?
उत्तर - चने की हरी पत्तियों में मैलिक अम्ल पाया जाता है।
प्रश्न 5. चने की खेती को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला रोग कौन सा है?
उत्तर - उकटा रोग चने की खेती को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है।
प्रश्न 6. चने की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए बीजों को किस रसायन से उपचारित करके बोना चाहिए?
उत्तर - राइजोबियम कल्चर से चने के बीजों को उपचारित करके बोने से पौधे स्वस्थ पैदा होते हैं और न ही पौधों में रोग एवं बीमारियां लगती हैं। इससे अच्छी उपज प्राप्त होती है।
प्रश्न 7. चने की फसल में Topping क्यों की जाती है?
उत्तर - चने की फसल में Topping इसलिए की जाती है ताकि पौधे में शाखाएं अधिक निकले जिससे अधिक पैदावार प्राप्त होती है।
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