अधिक लाभ कमाने के लिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें
सूरजमुखी का वानस्पतिक वर्गीकरण
वानस्पतिक नाम ( Botanical Name )
हैलीएन्थस एन्नस ( Helianthus annus Linn. )
कुल ( family )
कम्पोजिटी ( compositae )
गुणसूत्र संख्या
2n = 34
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अधिक लाभ कमाने के लिए सूरजमुखी ( Sunflower in Hindi ) की खेती कैसे करें |
सूरजमुखी का महत्व एवं उपयोग
सूरजमुखी एक नई तिलहनी फसल है। सूरजमुखी के बीज से 40-52% तक तेल व प्रोटीन 20-25% तक प्राप्त हो जाती है। सूरजमुखी की फसल 90-100 दिन में तैयार हो जाती है, इसलिए इसे सघन फसल-चक्रों में सफलतापूर्वक उगाया जाता है। सूरजमुखी का तेल जल्दी खराब नहीं होता, अतः इसके तेल को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
सूरजमुखी के तेल का उपयोग वनस्पति घी को तैयार करने में भी किया जाता है। इसकी गिरी ( Kernals ) काफी स्वादिष्ट होती है। इसे कच्चा या मूंगफली की तरह भूनकर खाया जाता है। सूरजमुखी के बीजों से तेल निकालकर जो खली बचती है उसका उपयोग पशुओं को खिलाने में किया जाता है। खली में उच्चतम कोटि की 40-44% प्रोटीन पाई जाती है।
अतः इसे पशुओ व मुर्गियों के राशन में मिलाया जा सकता है। इसके द्वारा बच्चों का आहार भी तैयार किया जा सकता है। सूरजमुखी की गिरी को चिरौंजी व खरबूजे की गिरी के स्थान पर प्रयोग में ला सकते हैं।
सूरजमुखी को कुछ क्षेत्रों में चारे के लिए व बाग-बगीचों में अलंकारिक पौधों ( Ornamental plants ) के रूप में भी उगाया जाता है। सूरजमुखी के तेल का उपयोग पकवान आदि तैयार करने में भी किया जाता है।
सूरजमुखी से होने वाले लाभ
अ. सूरजमुखी से उत्पादकों के लिए होने वाले लाभ
• सूरजमुखी प्रकाश एवं ताप असंवेदी होने के कारण इस पर प्रकाश व तापक्रम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, अतः इसे वर्ष में किसी भी समय उगा सकते हैं।
• इसके पौधे कड़े व नमीयुक्त होते हैं अतः यह शुष्क खेती के लिए बहुत अच्छी होती है।
• इसकी फसल अवधि कम होने के कारण यह बहुफसली खेती के लिए अच्छी होती है।
• इसमें तेल का प्रतिशत 40-50% होता है।
• इसकी बुवाई करने पर 10-12 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर है लगता है और बहुत ही कम समय में अधिक बीज उत्पादन ( 1 : 80 ) हो जाता है।
• इसकी फसल बहुत ही कम समय में तैयार हो जाती है। अतः एक वर्ष में इसकी फसल को 3 बार ले सकते हैं।
• यह बहुत ही कम लागत की फसल है, और इसकी खेती सफलतापूर्वक हो जाती है।
• इसकी फसल से 3 टन उत्पादन 1 साल में एक खेत में होता है।
• इसकी फसल को सभी प्रकार की भूमियों में, उचित मात्रा में उर्वरक देने पर आसानी से की जा सकती है।
• इसकी खेती को लवणीय भूमि में भी आसानी से कर सकते हैं।
• इससे प्राप्त हुये माल का बाजार में उचित मूल्य मिल जाता है तथा विक्रय भी आसानी से हो जाता है।
• सूरजमुखी का पौधा मधुमक्खी पालन व चारे के लिए भी उपयुक्त होता है।
• सूरजमुखी के पौधों में अधिक ताप सहन करने की शक्ति होती है।
ब. सूरजमुखी से ग्राहकों के लिए होने वाले लाभ
• सूरजमुखी के बीज मानव उपयोगी खाने पकाने के काम आते हैं।
• सूरजमुखी का तेल अधिकतर खाद्य तेल के रूप में ही प्रयोग होता है।
• उत्तमता की दृष्टि से उच्च गुण वाला तेल, यह लिनोलिक अम्ल ( 50-65% ) देता है, जो कि रक्तसिरम कोलेस्ट्राल कम बनाते हैं, अतः ह्रदय रोगियों के लिए उपयुक्त होता है।
• यह विटामिन A, D व E का अच्छा स्त्रोत है।
• बीज से तेल निकालने के बाद जो खली बचती है, उसमें 45% तक प्रोटीन पाई जाती है।
• सूरजमुखी का तेल जल्दी खराब नहीं होता है, अतः इसे लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
स. सूरजमुखी से कारखानों को होने वाले लाभ
• सूरजमुखी से तेल निकालना बहुत ही आसान होता है।
• एक ही वर्ष में तीन फसल प्राप्त हो जाती हैं अतः तेल कारखानों को पूरे वर्ष भर कच्चा पदार्थ मिलता रहता है।
• सूरजमुखी के बीजों में 40 - 45% तेल पाया जाता है। इससे रिफाइण्ड तेल व वनस्पति घी बनाकर बाजारों में बेचकर अधिक लाभ कमाया जाता है।
• इसमें ओलिक अम्ल 32 - 47% तक पाया जाता है - जो कि हाइड्रोजनिक प्रक्रिया को परिशुद्ध करता है।
सूरजमुखी का वितरण एवं क्षेत्रफल
सूरजमुखी को मुख्य रूप से रुस, कनाडा, बुल्गारिया व रुमानिया आदि देशों में वनस्पति घी तैयार करने के लिए उगाया जाता है। भारत में पिछले 35 से 40 वर्षों से ही सूरजमुखी की खेती सरकारी फार्मों, तथा कुछ उन्नतशील किसानो द्वारा ही की जाने लगी है। अब सरकार भी सूरजमुखी की खेती को बढ़ावा देने लगी है। भारत में सूरजमुखी फसल का प्रचलन सन् 1969 में प्रारंभ हुआ।
सूरजमुखी की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु
प्रकाश ताप का सूरजमुखी के पौधों की वृद्धि एवं विकास में कोई अंतर नहीं पड़ता है अर्थात सूरजमुखी एक अप्रदीप्तिकाल पौधा ( day natural ) है। सूरजमुखी के इसी गुण के कारण ही इसे खरीफ, रबी व बसंत तीनों मौसम में आसानी से उगाया जाता है। धिक आपेक्षिक आर्द्रता बा बादलों के छाये रहने से उपज में कमी आती है।
इसमें सूखा सहन करने की अधिक क्षमता होती है। हर प्रकार की जलवायु में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। 50-80 सेंमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
सूरजमुखी का वर्गीकरण ( classification of sunflower )
वंश हेली एन्थस में इसकी कुल 264 प्रजातियां हैं जिसमें हेलीएन्थस एनस को छोड़कर समस्त जंगली जातियां हैं।
भारत तथा अमेरिका में उगाई जाने वाले समस्त प्रजातियों को बीजों के रंग तथा आकार के आधार पर निम्न तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है -
( अ ) बड़े तथा सफेद दाने वाली प्रजातियां
इन प्रजातियों के बीजों में तेल का प्रतिशत अधिक होता है। अतः इन जातियों के बीजों में अधिक मात्रा में तेल पाया जाता है।
( ब ) छोटे तथा काले दानों वाली प्रजातियां
इन प्रजातियों के बीजों में प्रोटीन का प्रतिशत अधिक होता है। अतः इन जातियों के बीजों में प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है। इनका उपयोग हम खाने के रूप में करते हैं।
( स ) मध्यम एवं धारीयुक्त बीजों वाली प्रजातियां
ये प्रजातियां दोनों ही प्रजातियों के मध्य के गुण रखती हैं। इनका उपयोग दोनों ही उद्देश्यों हेतु किया जाता है। अतः इनका उपयोग तेल निकालने एवं खाने हेतु किया जाता है।
सूरजमुखी की उन्नतशील जातियां
सूरजमुखी की नव विकसित उन्नतशील जातियां
DRSF-108, CO-5, LSF-8, DRSF-113, KBSH-41, PSFH-118, LSFH-3, HSFH-848, DRSH-1, PSFH-569, फुले रविराज, सूरजमुखी
गत वर्षो में सूरजमुखी की नई विकसित उन्नत जातियां
PSFH-67, TNAU-SUF-7, GAU-SUF-15, PKVSH-27, ज्वालामुखी, DSH-1, PAC-1091, सन्जीनी-85, PAC-36, LS-11, MLSFH-47, TCSH ( संकर ), DRSHI ( संकर )
सूरजमुखी की अन्य संकर जातियां
बादशाह, मार्डन ( संकुल ), PSF-5, PKL-7, BSH-1 ( अंगमारी रोधक ), MSFH-1 ( गेरुई रोधक ), तारा, मंजिरा, DRSHI, K-1, A-1
सूरजमुखी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
सूरजमुखी की खेती के लिए रबी की फसल के लिए भारी दोमट मिट्टी व खरीफ की फसल के लिए एल्यूवियल दोमट मृदा अच्छे जल निकास के साथ, उत्तम रहती है। सूरजमुखी की खेती पथरीली व विभिन्न प्रकार की भूमियों में की जा सकती है। भूमि का पी.एच. 6.5 से 8.0 तक होना चाहिए।
सूरजमुखी की खेती के लिए भूमि की तैयारी करना
सूरजमुखी की खेती के लिए खेत में एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करते हैं। इसके बाद दो-तीन जुताई हैरो या देशी हल से करते हैं फिर पाटा या पटेला चला देते हैं। जिससे मिट्टी भर बड़ी हो जाती है।
सूरजमुखी के बीजों का छिलका मोटा और बहुत कड़क होता है, इसी कारण से बीज बहुत धीरे-धीरे पानी को सोखतज है। अतः जमाव के समय खेत में नमी का होना अत्यंत जरूरी है। खेत में नमी की मात्रा कम होने पर पलेवा करके बुवाई करनी चाहिए।
सूरजमुखी की खेती के लिए उचित खाद एवं उर्वरक की मात्रा
सूरजमुखी की फसल से अधिक उपज लेने के लिए फसल में उर्वरक डालना अति आवश्यक है। खेतों में उर्वरक डालने से पहले खेत की मिट्टी की जांच अवश्य करा लेनी चाहिए। सूरजमुखी की खेती के लिए 60-80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40-50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए।
सूरजमुखी की फसल का बुवाई का समय
सूरजमुखी की फसल किसी भी ऋतु में प्रभावित नहीं होती है अतः इसकी साल के किसी भी माह में बुवाई कर सकते हैं। खरीफ की फसल में सूरजमुखी की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह से लेकर अगस्त माह तक करते हैं। वहीं रबी की फसल में सूरजमुखी की बुवाई अक्टूबर के दूसरे सप्ताह से लेकर नवंबर माह तक करते हैं।
इसके अलावा जायद की फसल में सूरजमुखी की बुवाई 15 फरवरी से लेकर 15 मार्च तक करते हैं। फरवरी के प्रारंभ में बोई गई फसल से सबसे अधिक उपज प्राप्त होती है। सूरजमुखी की फसल की बुवाई अत्यंत अधिक ठंडे मौसम को छोड़कर साल के सभी महीनों में किसी भी माह में कर सकते हैं।
सूरजमुखी की खेती के लिए आवश्यक बीजदर एवं बीजोपचार
सूरजमुखी की खेती के लिए 8-10 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। हमें सदैव प्रमाणित बीजों को ही बोना चाहिए। बीजों को बोने से पहले 3 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से डाइथेन-एम-45 या कैप्टान नामक रसायनों से बीज उपचार करना चाहिए।
इससे बीजों मैं फफूंद नहीं लगता हैं और पौधे स्वास्थ पैदा होते हैं। बुवाई के पूर्व बीज को 10-12 घंटे तक पानी में भिगोकर बोने से अंकुरण शीघ्र होता है।
सूरजमुखी की फसल बोने की विधि
सूरजमुखी के बीजों को 60-80 सेंमी. की दूरी पर बनी कतारों में बोना चाहिए। कतारों में 20-25 सेंमी. की दूरी पर बीज डालना चाहिए। बीजों को 3-4 सेंमी. से अधिक गहराई पर नहीं डालना चाहिए। अगर बड़े पैमाने पर सूरजमुखी की बुवाई करना हो तो मक्का बोने की मशीन से भी बुवाई कर सकते हैं। असिंचित क्षेत्रों में 50-60 हजार व सिंचित क्षेत्रों में 80-100 हजार पौधे प्रति हेक्टेयर अवश्य होने चाहिए।
सूरजमुखी की फसल में निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियन्त्रण
बुआई के 10 से 12 दिन बाद उगे हुए घने पौधों को उखाड़ देना चाहिए ताकि कतार में पौधे के बीच की दूरी 20 सेंमी. रह जाए। फसल में खरपतवारों की रोकथाम करना अति आवश्यक है। खरीफ की फसल में दो बार और रबी तथा बसंत ऋतु की फसल में एक बार निराई-गुड़ाई करना अति आवश्यक है।
घने हुए पौधों से निकाले गए पौधों को खाली स्थानों पर रोक सकते हैं। बुवाई के पहले 2 महीनों में 1-2 निराई-गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए। सूरजमुखी का फूल बहुत बड़ा और बहुत भारी होता है, जिसके कारण आंधी पानी आने पर पौधे गिर जाते हैं। इसलिए दूसरी सिंचाई के समय अर्थात बुवाई के लगभग 50 दिन बाद पौधों के तने के पास अगल-बगल में मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।
सूरजमुखी की फसल में आवश्यक सिंचाई
रबी की फसल में दो बार सिंचाई और बसंत ऋतु में 5-6 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पहली सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन बाद करनी चाहिए तथा दूसरी सिंचाई करीब 50 दिन बाद करनी चाहिए। तीसरी सिंचाई फुल निकलने और दाने भरने की अवस्था में करनी चाहिए। खरीफ की फसल में आवश्यकतानुसार 3-4 सिंचाई करनी चाहिए।
सूरजमुखी की फसल की कटाई एवं मड़ाई
जब सूरजमुखी के बीज पककर कड़े हो जाएं, तो उसके फूलों की कटाई कर लेनी चाहिए। पके हुए फूलों का पिछला भाग पीले भूरे रंग का हो जाता है। फूलों को कटाई करने के बाद धूप में सुखा लेना चाहिए। इसके बाद जब फूल अच्छी तरह सूख जाते हैं तो फूलों को हाथ से या डण्डों से पीटकर मड़ाई कर लेते हैं।
बीजों में 10-12% नमी रहने पर गेहूं वाली थ्रेसर से भी इसकी मडाई की जाती है। फसल के पकने का समय, मौसम और सूरजमुखी की किस्म पर निर्भर करता है। शीतकालीन फसल 130 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है। जायद की फसल 90 से 100 दिन में और खरीफ की फसल 120 से 130 दिन में पक जाती है।
सूरजमुखी की फसल से प्राप्त उपज एवं भंडारण
सूरजमुखी की उन्नतशील जातियों को बोने पर 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक उपज प्राप्त हो जाती है। सूरजमुखी के बीजों को सामान्य विधियों से भंडारित किया जा सकता है, परन्तु बीजों में नमी 10% से अधिक नहीं होनी चाहिए। भंडारण ठण्डी व सूखी जगह पर करना चाहिए।
सूरजमुखी ( sunflower ) की खेती से मिलते-जुलते कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1. सूरजमुखी की फसल की रखवाली कैसे करते हैं?
उत्तर - सूरजमुखी के अकेले पकते हुए खेतों में, विशेषकर जब आसपास के खेतों में कोई भी फसल नहीं बोई गई हो तब पशु-पक्षी बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसी स्थिति में पक्षियों को उड़ाना अत्यंत आवश्यक होता है। इसके लिए खेतों में कागभगोड़ा ( बिजूका ) बनाना चाहिए, इससे पक्षियों को लगता है कि खेत में कोई मनुष्य खड़ा है जिससे वह फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इसके अलावा मौसमी फसलों के साथ या बाद में पकने वाली फसल को पक्षी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
प्रश्न 2. सूरजमुखी की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों ( sunflower diseases ) के नाम लिखिए?
उत्तर - सूरजमुखी की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग ( बीमारियां ) :-
• जड़ सड़न, तना सड़न, उकठा रोग
• बीज सड़न
• झुलसा रोग
• रतुआ
• मृदुरोमिल आसिता ( डाउनी मिल्डयु )
• चूर्णी फफूंदी रोग
• शीर्ष सड़न रोग
• फाइलोडी रोग
• काला सड़न रोग
प्रश्न 3. सूरजमुखी की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों ( sunflower pests ) के नाम लिखिए?
उत्तर - सूरजमुखी की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों के नाम :-
• सफेद भृंग
• कटुआ इल्ली
• रस चूसक कीट
माहू
फुदका
• पत्ती एवं फूलों को खाने वाले कीट
• रोमिल इल्ली
• चने की इल्ली
प्रश्न 4. सूरजमुखी के लिए ' एजोस्पाइटिलम ' एक उपयोगी जैविक खाद है? कैसे ।
उत्तर - सूरजमुखी के पौधों को जैविक उर्वरकों द्वारा भूमि में नाइट्रोजन तत्व का पर्याप्त मात्रा में मिलना बहुत आवश्यक होता है। जैविक खादों में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक मात्रा में उपस्थित रहती है। यह उर्वरक सूरजमुखी की खेती के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। पौधों की बढ़वार के समय ' एजोस्पाइटिलम ' नामक जीवाणु भूमि में देना बहुत उपयोगी सिद्ध होता है।
यह जीवाणु स्वतंत्र रूप से वायुमंडलीय नत्रजन का स्थरीकरण करके फसल को नत्रजन उपलब्ध कराता है तथा फसल की कुल नत्रजन आवश्यकता का 40% की पूर्ति कर देता है। वर्ष 1991 में इस संदर्भ में हुए प्रयोगों में '' अन्नामलाई कृषि विश्वविद्यालय '' में यह निष्कर्ष निकाला गया कि सूरजमुखी की बुवाई के 30 से 45 दिन बाद खेत में 20 से 30 किलो ' एजोस्पाइटिलम ' नामक खाद की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डाली जानी चाहिए।
ऐसा करने पर सूरजमुखी की पैदावार बढ़ाई जा सकती है।
प्रश्न 5. सूरजमुखी के तेल में कौन-कौन से अम्ल पाए जाते हैं?
उत्तर - सूरजमुखी के तेल में निम्न अम्ल पाए जाते हैं :-
• पामिटिक अम्ल ( 5.7 - 7.6% )
• स्टियरिक अम्ल ( 4.7 - 6% )
• औलिक अम्ल ( 27.9 - 38.3% )
• लिनोलिक अम्ल ( 51.6 - 59.6% )