जौ ( Barley in Hindi ) की उन्नत खेती कैसे करें
जौ / जवा की खेती कैसे करें हिन्दी में
जौ का वानस्पतिक वर्गीकरण ( Botanical classification of Barley )
वानस्पतिक नाम
होर्डियम वलगेयर एल. ( Hordeum vulgare L. )
कुल ( family )
ग्रेमिनी ( Gramineae )
गुणसूत्र संख्या
2n = 14
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जौ की खेती कैसे की जाती है पूरी जानकारी |
जौ ( Barley ) का महत्व तथा उपयोग
विश्व के विभिन्न भागों में जौ की खेती पुराने समय से ही की जा रही है। जौ का उपयोग प्राचीनकाल से ही मनुष्यों के भोजन और पशुओं के दाने के रूप में होता चला आ रहा है। हमारे देश में जौ का उपयोग रोटी बनाने में किया जाता है। इसके अलावा चने के साथ मिलाकर बेझर के रूप में अथवा गेहूं के साथ मिलाकर किया जाता है।
कभी-कभी जौ ( Barley in Hindi ) को भूनकर या पीसकर सत्तू के रूप में भी किया जाता है। इसके अलावा जौ का प्रयोग माल्ट के लिए किया जाता है तथा यह शराब आदि बनाने के भी काम आता है। हमारे देश में जौ का अधिक उपयोग जानवरों के लिए चारे एवं दाने के लिए तथा मुर्गीपालन में अच्छे दाने के लिए किया जाता है।
जौ ( Barley ) का क्षेत्रफल एवं वितरण
जौ ( Barley ) एक उष्णकटिबन्धीय पौधा है परन्तु इसकी खेती शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु में सफलतापूर्वक की जाती है। जौ ( Barley ) की खेती विश्व के अधिकांश भागों में की जाती है। विस्तृत रूप में जौ की खेती करने वाले देशों में चीन, रूस, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, भारत, कनाडा, रुमानिया, टर्की, पोलैण्ड, मोरक्को, फ्रांस, डेनमार्क, ग्रेट ब्रिटेन, हंगरी, अर्जेंण्टाइना एवं ऑस्ट्रेलिया आदि देश हैं। जौ ( Barley ) का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश चीन है।
जौ ( Barley ) की खेती करने वाले देशों में विश्व में भारत का छठवां स्थान है, जहां पर विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 3.5% भाग उत्पन्न किया जाता है। भारत में जौ ( Barley ) का कुल क्षेत्रफल सन् 2000 - 2001 के आंकड़ों के अनुसार 7.34 लाख हेक्टेयर, कुल उपज 14.12 लाख टन तथा औसत उपज 1923 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी।
भारत के अधिकांश राज्यों में जौ की खेती की जाती है परंतु सबसे अधिक उत्पादन करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश है। इसके बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा तथा बिहार आदि राज्यों में भी जौ का उत्पादन अच्छा हो जाता है। उत्तर प्रदेश राज्य में भारत के कुल उत्पादन का 42% भाग उत्पन्न किया जाता है।
उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिलों में जौ की खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में जौ की खेती सबसे अधिक मात्रा में की जाती है। इसके बाद इलाहाबाद, जौनपुर और गोरखपुर जिलों का भी जौ की खेती करने में अच्छा स्थान है।
जौ ( Barley ) की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु
जौ ( Barley ) एक शीतोष्ण जलवायु की फसल है लेकिन इसकी खेती समशीतोष्ण जलवायु में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है। जौ ( Barley ) की खेती समुद्र तल से लेकर 4000 मीटर की ऊंचाई तक आसानी से की जा सकती है।
जौ ( Barley ) की खेती करने के लिए ठण्डी और नम जलवायु सबसे अच्छी रहती है। जौ की खेती उन सभी स्थानों पर आसानी से की जा सकती है जहां 4 माह तक पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल ठंडा मौसम पाया जाता है।
जौ ( Barley ) की खेती के लिए न्यूनतम तापमान 35-40°F तथा उच्चतम तापक्रम 72-86°F और उपयुक्त तापक्रम 70°F होता है। जिन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा 70 से 100 सेमी. तक होती है, उन सभी स्थानों पर जौ ( Barley ) की खेती आसानी से की जाती है।
जिन क्षेत्रों में कम वर्षा होती है उन क्षेत्रों में भी जौ की खेती आसानी से की जा सकती है तथा जिन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है उन क्षेत्रों में जौ की खेती नहीं की जा सकती है।
जौ ( Barley ) की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
जौ की फसल के लिए अच्छी जल-निकास वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। भारी भूमि जिनमें जल-निकास की सुविधाएं नहीं होती है, वे भूमि जौ की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं। जौ की खेती अधिकतर रेतीली भूमियों में की जाती है।
जौ की खेती के लिए ऊंची भूमियां भी उपयुक्त रहती हैं। ऊसर भूमि में भी जौ की खेती आसानी से की जा सकती है और लवड़ों के प्रति यह गेहूं की अपेक्षा अधिक सहनशील होता है। जौ की फसल को सूखे, क्षारीय और पाले की दशाओं में रवि के मौसम में उगाया जाता है।
जौ ( Barley ) की खेती करने के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें
जौ की फसल के लिए गेहूं की तुलना में खेत की तैयारी के लिए कम जुताई की आवश्यकता होती है। खेत की तैयारी करने के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से व 2-3 जुताईयां देशी हल या हैरो से करते हैं। ढेले तोड़ने व नमी की सुरक्षा के लिए खेत में पाटा लगाना अति आवश्यक है। भारी मृदाओं में कुछ क्षेत्रों में बक्खर का प्रयोग भी पहली जुलाई में करते हैं।
जौ ( Barley ) की खेती के लिए बीज की मात्रा एवं बीजोपचार
बीज की मात्रा बोने की विधियों पर निर्भर करती है। हल के पीछे कूंड में या सीडड्रिल द्वारा बुवाई करने पर 75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, छिड़काव विधि द्वारा बुवाई करने पर 100 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर व डिबलर विधि में बुवाई करने पर 25-30 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
बीजों को बोने से पहले हमेशा कैप्टान आदि रसायन से ( 250 ग्राम कैप्टान 100 किलोग्राम बीज ) उपचारित करके बोना चाहिए। असिंचित क्षेत्रों में तथा पछेती बुआई में 100 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर बोना चाहिए। असिंचित क्षेत्रों में बीजों को पानी में भिगोकर बुवाई करने पर अंकुरण अच्छा एवं जल्दी होता है।
जौ ( Barley ) की उन्नतशील जातियां
• ज्योति ( K 572/10 ) > 130-135 दिन > 35-40 (Q/ha)
• आजाद ( K 125 ) > 125-130 दिन > 30-35 (Q/ha)
• अम्बर ( K 71 ) > 125-130 दिन > 25-30 (Q/ha)
• रतना > 110-120 दिन > 25-30 (Q/ha)
• विजया ( K 572/11 ) > 120-125 दिन > 25-30 (Q/ha)
• आर. एस. 6 > 115-120 दिन > 25-30 (Q/ha)
• रणजीत ( DL 70 ) > 120-125 दिन > 30-35 (Q/ha)
• आर. डी. बी. 1 > 120-125 दिन > 35-40 (Q/ha)
• सी. 138 > 125 दिन > 10-15 (Q/ha)
• सी. 164 > 125 दिन > 20-30 (Q/ha)
• बी. जी. 105 > 125-130 दिन > 15-25 (Q/ha)
• बी. जी. 108 > 120-125 दिन > 15-20 (Q/ha)
• कैलाश > 140-145 दिन > 30-35 (Q/ha)
• डोलमा > 140-145 दिन > 30-40 (Q/ha)
• हिमानी > 130-140 दिन > 30-35 (Q/ha)
• आर. डी. 57 > 120-130 दिन > 30-35 (Q/ha)
• आर. डी. 31 > 120-125 दिन > 30-32 (Q/ha)
• डी. एल. 36 > 130-135 दिन > 35-40 (Q/ha)
• डी. एल. 88 > 130-135 दिन > 35-40 (Q/ha)
• करण 3 > 130 दिन > 30-35 (Q/ha)
• करण 4 > 100-110 दिन > 40-45 (Q/ha)
• करण 18 > 125 दिन > 40-45 (Q/ha)
• करण 15 > 115-120 दिन > 40-45 (Q/ha)
• जवाहर जौ 01 > 130-135 दिन > 30.5 (Q/ha)
जौ ( Barley ) की फसल बोने की विधियां
गेहूं की तरह ही जौ को भी बोने की निम्नलिखित विधियां है -
( अ ) छिड़काव विधि द्वारा बुवाई
इस विधि द्वारा बुवाई करने पर तैयार खेत में बीजों को छिड़क दिया जाता है। इसके बाद बीजों को मिट्टी से ढकने के लिए जुताई कर देते हैं। यह बुवाई की उत्तम विधि नहीं है। लेकिन हमारे देश में यही विधि सबसे ज्यादा अपनाई आती है। इस विधि द्वारा बुवाई करने पर बीज की मात्रा अधिक लगती है।
इसके साथ ही कुछ बीज ऊपर-नीचे चले जाते हैं, जिसके कारण समुचित अंकुरण नहीं हो पाता है। छिड़काव विधि द्वारा बुवाई करने पर 100 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता पड़ती है।
( ब ) हल के पीछे कूंड में बुआई करना
इस विधि द्वारा बुवाई करने पर सबसे पहले हल से कूंड बनाया जाता है और हल के पीछे कूंड में हाथ से हल में नाई बांधकर बीज डाला जाता है। इसमें बीज समान गहराई पर और पंक्तियों में पड़ता है, कूंड 15-25 सेंमी के अन्तरण पर निकाले जाते है। इस विधि द्वारा बुवाई करने पर 75 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता पड़ती है।
( स ) सीडड्रिल द्वारा बुवाई
यह बुवाई की उत्तम विधि है। इस विधि में ट्रैक्टर या बैलों द्वारा चलने वाले सीडड्रिल के द्वारा बुवाई की जाती है। इसमें पंक्तियों की दूरी व पंक्ति में पौधे से पौधे की दूरी सदैव एक समान रहती है तथा बुवाई भी अति शीघ्र हो जाती है। इसमें बीजदर आवश्यकतानुसार कम या अधिक कर सकते हैं।
( द ) डिबिलर विधि
इस विधि द्वारा बुवाई करने पर श्रम अधिक व बीज कम मात्रा में लगता है। बीज की मात्रा कम होने पर इस विधि द्वारा बुवाई करते हैं।
जौ के बीज बोते समय बीजों की गहराई
जौ की बुवाई 5-6 सेंमी की गहराई पर की जाती है। बीजों को अधिक गहराई पर होने से बीजों का अंकुरण नहीं हो पाता व बीजों को कम गहराई पर बोने से नमी की कमी के कारण अंकुरण अच्छा नहीं हो पाता तथा कुछ बीज पक्षियों द्वारा खा लिए जाते हैं।
जौ ( Barley ) की खेती करने का समय
जौ की फसल की बुवाई सिंचित क्षेत्रों में नवंबर के दूसरे सप्ताह से लेकर नवंबर के अंतिम सप्ताह तक करनी चाहिए। देर से बुवाई करने पर ऊपज कम प्राप्त होती है। असिंचित क्षेत्रों में 15 से 30 अक्टूबर तक जौ की बुवाई की जाती है। पछेती बुवाई 15 दिसंबर से 20 दिसंबर तक कर सकते हैं। सी. 164 जाति की बुवाई देर से करने पर भी अच्छी उपज प्राप्त होती है।
जौ ( Barley ) फसल के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक
जौ की फसल में सिंचित क्षेत्रों में खाद की मात्रा अधिक व असिंचित क्षेत्रों में खाद की मात्रा कम लगाई जाती है। फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा व नत्रजन की 1/2 मात्रा बुवाई करते समय कूंड में 8-10 सेंमी की गहराई पर देनी चाहिए। असिंचित क्षेत्रों में नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्र एक साथ ही खेत में बुवाई के समय कूंडों में दी जाती है।
नत्रजन यूरिया, अमोनियम सल्फेट या कैलशियम अमोनियम नाइट्रेट के रूप में फास्फोरस सुपर फास्फेट व डाई अमोनियम फास्फेट के द्वारा पोटाश, पोटैशियम सल्फेट या पोटैशियम क्लोराइड से दे सकते हैं।
माल्ट बनाने वाले जौ में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक देने से दाने में प्रोटीन की मात्रा अधिक बढ़ती है जिसके कारण माल्ट की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
जौ ( Barley ) की फसल में आवश्यक सिंचाई व जल-निकास
जौ की फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 2-3 सिंचाईयो की आवश्यकता पड़ती है। पहली सिंचाई बुवाई के 30 दिन बाद, दूसरी सिंचाई बुवाई के 60-65 दिन बाद तथा तीसरी सिंचाई बालियों में दूध पढ़ते समय अर्थात 80-85 दिन बाद की जाती है।
यदि आपके खेत में पानी की सुविधा नहीं है तो 3 सिंचाई अधिक हैं और यदि आप के खेत में पानी की सुविधा है तो एक सिंचाई और कर सकते हैं। फसल में तीसरी व पहली सिंचाई का अधिक महत्व है। हर एक सिंचाई में 5-6 सेंमी पानी फसल में लगाना आवश्यक है।
फसल में 1-2 अतिरिक्त सिंचाई करने से दाने में प्रोटीन की मात्रा कम करने में सहायता मिलती है जिससे माल्ट अच्छा बनता है। यदि आपके खेत में 2 सिंचाइयों का ही पानी उपलब्ध हो तो पहली सिंचाई कल्ले फूटते समय बुवाई के 30-35 दिन बाद व दूसरी सिंचाई बालियां निकलते समय बुवाई के 80-85 दिन बाद करें।
और यदि एक ही सिंचाई लायक पानी उपलब्ध हो तो कल्ले फूटते समय बुवाई के 30-35 दिन बाद करें। अतिरिक्त पानी का खेत में रुकना भी फसल के लिए अत्यंत हानिकारक होता है। अतिरिक्त पानी को खेत में अधिक समय तक नहीं ठहरने देना चाहिए। 24 घंटे से अधिक पानी एक स्थान पर नहीं रुकना चाहिए। अतः खेतों में ठहरे अतिरिक्त पानी को जल-निकास द्वारा बाहर निकाल देना चाहिए। खेतों में जल-निकास की उचित सुविधा होनी चाहिए।
निराई-गुड़ाई एवं जौ ( Barley ) की फसल में खरपतवार नियंत्रण
खेतों में यदि खरपतवार का प्रकोप अधिक दिखाई दे तो निराई कर सकते हैं। गेहूं की भांति रसायनों के प्रयोग द्वारा जौ की फसल से खरपतवार का नियंत्रण किया जा सकता है। 2, 4-डी की 0.50 किग्रा सक्रिय मात्रा 600-800 लीटर पानी में घोलकर, बुवाई के 30-35 दिन बाद, खेतों में छिड़काव करने से चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
जंगली जई के नियंत्रण के लिए एवाडैक्स 1 किग्रा. मात्रा बुवाई के पहले या डोसानैक्स 1.0 किग्रा. बुआई के एक माह बाद 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। इससे जंगली जई पर नियंत्रण किया जा सकता है।
जौ ( Barley ) की फसल की कटाई-मड़ाई
गेहूं की फसल से जौ की फसल जल्दी पक जाती है। नवंबर के प्रारंभ में बोई गई फसल मार्च के अंतिम सप्ताह में पककर तैयार हो जाती है। फसल पकने के तुरंत बाद ही कटाई कर लेनी चाहिए नहीं तो फसल के दाने खेत में झड़ने लगते हैं। फसल की कटाई हंसिया से या बड़े फार्म पर कम्बाइन हार्वेस्टर से करते हैं। दानों में 20-30 प्रतिशत नमी रहने पर कटाई करते हैं। इसके बाद 4-5 दिन तक फसल को खलियान में सुखाकर मड़ाई बैलों द्वारा या पावर थ्रेसर द्वारा कर लेते हैं।
जौ ( Barley ) की फसल से प्राप्त उपज
जौ की उन्नतशील जातियां बोने पर 30-35 क्विंटल दाना व इतना ही भूसा प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है।
जौ ( Barley ) का भंडारण करना
जौ के दानों में जब 10-12% नमी बचे तब सुरक्षित स्थानों पर भंडारण में सुरक्षित रख देते हैं।
जौ की खेती से मिलते-जुलते कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1. जौ की फसल उत्पादन में आने वाली बाधाएं लिखिए?
उत्तर - जौ की फसल उत्पादन में आने वाली बाधाएं निम्नलिखित हैं :-
• जौ की खेती सीमान्त भूमियों में की जाती है। जहां पर सिंचाई की सुविधा कम होती है तथा भूमि अपेक्षाकृत कम उपजाऊ होती है।
• जौ को बिना dehusking किए आटे से अच्छी रोटी न बनने के कारण इसको खाने में कम पसंद किया जाता है।
• जौ की potential productivity गेहूं की अपेक्षा कम होने के कारण किसान गेहूं को उगाना ज्यादा पसंद करता है।
• जौ का बाजार में मूल्य बहुत कम मिलता है, जिसके कारण किसान जौ की खेती कम करते हैं।
• प्रकाश एवं ताप के प्रति असंवेदनशील प्रजातियों की उपलब्धता न होने के कारण जौ को बहुफसली कार्यक्रम में लागू नहीं किया जा सकता है।
• जौ की खेती कम वर्षा वाले क्षेत्रों में किए जाने के कारण मृदा अपेक्षाकृत कम लाभकारी फसल होने के कारण परिस्थितियों के अनुरूप अधिक उपज देने वाली प्रजातियों की कमी है।
प्रश्न 2. लवणीय भूमियों के लिए जौ की उन्नत किस्में कौन-कौन सी हैं?
उत्तर - लवणीय भूमियों के लिए जौ की उन्नत किस्में :-
• आजाद
• लखण
• रतना
• ज्योति
• आर. एस. 6
• अम्बर
• करण 15
• करण 19
• डी. एल. 157
प्रश्न 3. जौ की फसल में लगने वाली बीमारियां ( रोग ) कौन-कौन सी हैं?
उत्तर - जौ की फसल में लगने वाली बीमारियां ( रोग ) :-
• गेरुई या रतुआ या हरदा रोग
• कंडुवा रोग
• जड़ गलन
• मोल्या रोग
प्रश्न 4. जौ की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों के नाम लिखिए?
उत्तर - जौ की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों के नाम :-
• दीमक
• कट वोमर्स
• माहू
• चूहे
प्रश्न 5. जौ की खेती का समय क्या है?
उत्तर - जौ की बुवाई सिंचित क्षेत्रों में नवंबर के प्रथम सप्ताह से लेकर अंतिम सप्ताह तक करनी चाहिए तथा असिंचित क्षेत्रों में 15 से 30 अक्टूबर तक बुवाई की जाती है। देर से बुवाई 15 से 20 दिसंबर तक कर सकते हैं।
. Bahut achchhi jankari hai
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