अधिक उत्पादन पाने के लिए ढैंचा की खेती ( Dhaincha in Hindi ) कैसे करें
ढैंचा का उपयोग एवं महत्व
ढैंचा एक कम अवधि ( 45 दिन ) की हरी खाद की फसल है। गर्मियों के दिनों में 5 - 6 सिंचाई करके ढैंचा की फसल को तैयार कर लेते हैं तथा इसके बाद धान की फसल की रोपाई की जा सकती है। ढैंचा की फसल से प्रति हेक्टेयर भूमि में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन इकट्ठी हो जाती है। जुलाई या अगस्त में ढैंचा की फसल की बुआई कर, 45 - 50 दिन बाद खेत में दबाकर, हरी खाद का काम इस फसल से ले सकते हैं।
इसके बाद गेहूं या अन्य रबी की फसल को उगा सकते हैं। ढैंचा की फसल को शुष्क व नम जलवायु व सभी प्रकार की भूमियों में उगा सकते हैं। जलमग्न वाली भूमियों में ही यह 1.5 - 1.8 मी. ऊंचाई तक बढवार कर लेता है। यह एक सप्ताह तक 60 सेंटीमीटर पानी में खड़ा रह सकता है।
भूमि का पी.एच. मान 9.5 होने पर भी इसे उगा सकते हैं। अतः लवणीय व क्षारीय भूमियों के सुधार के लिए यह सर्वोत्तम है। भूमि का पी.एच. मान 10 - 5 तक होने पर लीचिंग अपनाकर या जिप्सन का प्रयोग करके इस फसल को उगा सकते हैं। इस फसल से 45 दिन की अवधि में लवणीय भूमियों में 200 - 250 क्विंटल जैविक पदार्थ भूमि में मिलाया जा सकता है।
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अधिक उत्पादन के लिए ढैंचा की उन्नत खेती कैसे करें
वानस्पतिक नाम
Sesbania aculeata ( L ) Pers
कुल Family
फेबेएसी ( Fabaceae )
ढैचा का वितरण
आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, हरियाणा व राजस्थान आदि राज्यों में ढैंचा की फसल को हरी खाद की फसल के रूप में उगाते हैं।
ढैंचा की खेती के लिए उपयुक्त भूमि व जलवायु
ढैंचा की फसल को सभी प्रकार की भूमियों व जलवायु की अधिकांश विषम परिस्थितियों में भी उगा सकते है।
ढैंचा की फसल के लिए भूमि की तैयारी
एक - दो जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके खेत को समतल कर लेते हैं। ढैंचा की फसल के लिए खेत की विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं होती है।
ढैंचा की उन्नतशील जातियां
फिलहाल में अभी तक ढैंचा की उन्नत जातियां विकसित नहीं हुई है। अतू क्षेत्रीय उपलब्धि के अनुसार ढैंचा के बीज प्राप्त करते हैं।
ढैंचा की फसल का बुआई का समय
ढैंचा की फसल का बुआई का समय मई से अगस्त महीने तक उपयुक्त होता है।
ढैंचा के लिए बीज दर
ढैंचा की फसल के लिए बीज दर हरी खाद के लिए 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर व बीज उत्पादन के लिए 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
ढैंचा की बुआई की विधि
साधारणतया हरी खाद के लिए इसकी बुवाई छिड़काव विधि द्वारा करते हैं। कतारों में बुवाई करने पर पौधे से पौधे की दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर सर्वोत्तम होती है। बुआई से पहले बीजों को, रात भर पानी में भिगोकर, सुबह बुआई करने से, अंकुरण शीघ्र होता है। चिकनी, लवणीय, क्षारीय भूमियों में खेत में पानी भरकर, लेह लगाकर ( muddy ) इसका बीज बिखेरकर बो सकते हैं।
ढैंचा की फसल के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरक
बुआई के समय 20 - 25 किलोग्राम नाइट्रोजन व 50 - 60 किलोग्राम फास्फोरस, बुआई के समय संस्थापन विधि से खेत में लगा देते हैं। अगर भूमि का पी.एच. मान 10 या इससे ऊपर है तो 70 - 80 कु. जिप्सम ( कैलशियम सल्फेट ) प्रति हेक्टेयर खेत में मई में लगाकर लगातार खेत में 8 से 10 दिन पानी भरा रखकर, लीचिंग की क्रिया होने दी जाती है। इसके बाद इस पानी को खेत से निकालकर ताजा पानी भरकर, खेत में ढैंचा की बुआई कर देते हैं।
ढैंचा की फसल के लिए आवश्यक सिंचाई
गर्मियों में बोई गई ढैंचा की फसल में बुवाई के एक-एक सप्ताह बाद 45 दिन तक सिंचाई करते रहना चाहिए, इस प्रकार 5 से 7 सिंचाई में फसल तैयार हो जाती है। वर्षा ऋतु में सिंचाई, वर्षा के ऊपर निर्भर करती है।
फसल की खेत में पलटाई ( Buring / Incorporation )
बुआई के 40 से 50 दिन बाद खडी हरी फसल को ग्रेन मैन्योर ट्रेम्पलर या डिस्क प्लोजिंग या डिस्क हैरो की सहायता से खेत में पलटकर मिला देते हैं। इस समय खेत में नमी का होना अति आवश्यक है ताकि जैव पदार्थ का सडाव प्रारम्भ हो सके। इस समय तक फसल में 80 से 115 किलोग्राम नाइट्रोजन व 200 से 250 क्विंटल जैव पदार्थ, प्रति हेक्टेयर खेत को प्राप्त हो जाता है।
धान की रोपाई के लिए, पलटाई के तुरन्त बाद, खेत में पानी भरकर, धान की एक माह आयु की प्रौढ, रोपी जा सकती है। धान के खेत में भरा पानी, बिना किसी हानि पहुंचाए, ढैंचा की फसल के सडाव में सहायक है। इस प्रकार धान के खेत में रोपाई के 4 से 5 दिन बाद ही, खेत में जैव पदार्थ द्वारा दी गई कुछ नाइट्रोजन का 50% भाग, उपलब्ध अमोनिकल नाइट्रोजन में बदल जाता है। फसल की अवधि 45 दिन से ज्यादा होने पर तना सख्त हो जाता है व जैव पदार्थ के सडाव में कठिनाई होती है।
ढैंचा के बीज के लिए फसल की कटाई
जुलाई माह में बोई गई फसल, अक्टूबर के अन्त या नवम्बर के प्रारम्भ में पककर तैयार हो जाती है, उससे 10 से 15 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है।
फसल चक्र
सिंचाई के साधन उपलब्ध होने पर, रबी की फसल कटते ही मई में इसकी बुवाई कर सकते हैं। इस प्रकार यह फसल, खरीफ की धान आदि फसलों के लिए हरी खाद का काम करती है। वर्षाकाल में ढैंचा बोकर, बाद में रबी की गेंहूं, आलू, जौ या जई आदि फसलों को उसके साथ फसल चक्र में रख सकते हैं।
ढैंचा की खेती से मिलते-जुलते कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1. ढैंचा की उन्नत किस्में कौन-कौन सी हैं?
उत्तर - ढैंचा की उन्नत किस्में :-
• सी. एस. डी. 137
• सी. एस. डी. 123
• पन्त ढैंचा - 1
• पंजाबी ढैंचा - 1
• हिसार ढैंचा - 1
प्रश्न 2. ढैंचा की फसल में खरपतवार नियंत्रण कैसे करते हैं?
उत्तर - ढैंचा की फसल के साथ खेतों में अन्य आवश्यक पौधे अत्यधिक मात्रा में उग आते हैं, जो ढैंचा की फसल को अत्यंत मात्रा में नुकसान पहुंचाते हैं। अतः इन खरपतवारों का नियंत्रण करने के लिए खेतों में निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
खेत में पहली निराई-गुड़ाई पौधों की रोपाई के लगभग 25 दिन बाद करनी चाहिए तथा दूसरी निराई-गुड़ाई 40 - 45 दिन के बाद करनी चाहिए। निराई-गुड़ाई करने से मुख्य पौधों पर खरपतवारों का प्रकोप कम हो जाता है, जिससे उपज में वृद्धि होती है।
प्रश्न 3. ढैंचा की फसल से होने वाले लाभ लिखिए?
उत्तर - ढैंचा की फसल से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं :-
• ढैंचा की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त होती है, जिससे उनके बीजों को बाजार में बेचने पर किसानों को अच्छी आय प्राप्त हो जाती है।
• यह फसल बहुत ही कम समय में तैयार हो जाती है।
• इस फसल से प्रति हेक्टेयर भूमि में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन इकट्ठी हो जाती है।
• इस फसल को शुष्क व नम जलवायु तथा सभी प्रकार की भूमियों में उगा सकते हैं।
• ढैंचा की फसल से हमें हरी खाद प्राप्त होती है।
प्रश्न 4. ढैंचा की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनकी रोकथाम कैसे करें?
उत्तर - वैसे तो ढैंचा की फसल में बहुत ही कम रोग लगते हैं लेकिन फिर भी कुछ कीट की सुडियां ढैंचा की फसल को हानि पहुंचाती हैं। जिसके कारण बहुत ही कम पैदावार प्राप्त होती है। ढैंचा के पौधों पर कीटों का लार्वा ( सूंड़ी ) पत्तियों तथा कोमल - कोमल शाखाओं को खाकर पौधों की वृद्धि एवं विकास को रोक देती हैं।
जिसके कारण पौधों का विकास रुक जाता है और उसका सीधा प्रभाव उपज पर पड़ता है और हमें बहुत ही कम उपज प्राप्त होती है। अतः इसकी रोकथाम करने के लिए पौधों पर नीम के काढे अथवा सर्फ के घोल का छिड़काव समय-समय पर करना चाहिए। जिससे इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
प्रश्न 5. ढैंचा की फसल बुवाई के लगभग कितने दिनों बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है?
उत्तर - ढैंचा की फसल बुवाई के लगभग 130 - 150 दिनों बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है।