अलंकृत बागवानी का महत्व और भविष्य हिन्दी में
हमारे देश में अलंकृत पौधों का विवरण प्राचीनकाल से ही मिलता है। जैसे - गीता, रामायण आदि नामक ग्रंथों में शोभादार पौधों का विवरण दिया गया है। जिससे हमें पता चलता है कि हमारे पूर्वज प्रकृति से बहुत प्रेम रखते थे।
उन्होंने उस समय फूलों को "सुमानस" नाम से पुकारा जो कि उनकी सौंदर्य प्रियता का प्रतीक है।हिंदू धर्म में पीपल, अशोक, कदंब, कमल, ढाक आदि पौधों को धार्मिक दृष्टि से बहुत उत्तम माना जाता है।
हिंदुओं के बाद मुगलकाल में काश्मीर, लाहौर, दिल्ली, आगरा में बहुत से सौंदर्ययुक्त उद्यान लगवाए गए।ब्रिटिश काल में भी अलंकृत बागवानी पर काफी जोर दिया गया और बड़े-बड़े घास के मैदान बनाए गए तथा फूल वाले पौधों को पट्टियों में लगाया गया।
मनुष्य के लिए दैनिक आवश्यकताएं जुटाने के अलावा मनोरंजन प्राप्त करना भी आवश्यक हो गया है, क्योंकि मानव जीवन दिन प्रतिदिन कठोर एवं व्यस्त होता जा रहा है। निश्चित ही अलंकृत पौधों व फूलों को उगाना, दिनभर के कठिन परिश्रम के बाद मनुष्य पार्क में बैठना पसंद करता है।
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भारत में अलंकृत बागवानी का क्या महत्व है एवं इसका भविष्य लिखिए |
मनुष्य के जीवन में अलंकृत बागवानी का बहुत अधिक महत्व है जो निम्नलिखित हैं -
(1) सजावट के लिए -
जिस तरह हमारे देश से गरीबी को मिटाना आवश्यक है उसी तरह देश के बड़े-बड़े शहरों एवं गांवों के दूषित वातावरण को भी शुद्ध बनाना आवश्यक है।मनुष्य की कार्यक्षमता एवं जीवन का सीधा संबंध शुद्ध वातावरण से होता है अतः मनुष्य के आसपास का वातावरण शुद्ध रहेगा तो मनुष्य भी स्वस्थ रहेगा।हम लोग गांव व शहर की बड़ी-बड़ी इमारतों जैसे रेलवे स्टेशन, स्कूल व कॉलेज, व्यक्तिगत घरों, पंचायत घर, खेल मैदान, अस्पताल, डाकघर, सामुदायिक केंद्र व तारघर इत्यादि को फूल व पौधों द्वारा सुंदर बना सकते हैं।
फूल वाले पौधों का प्रयोग निजी मकानों को सजाने के लिए किया जाता, जिसको हमने निजी उद्यान कहते हैं। ये उद्यान घर के पास या चहारदीवारी के अंदर ही बनाए जाते हैं। इससे घर की सुंदरता बढ़ती है।
गांवों व शहरों के बाहर पार्क का बनाना अति आवश्यक होता है और इन पार्क में अच्छी हरियाली, फूल और पौधों का लगाना अति आवश्यक होता है।जो कि बच्चों एवं दूषित वातावरण में कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए लाभप्रद होता है।
बड़े-बड़े हाईवे रोड के डिवाइडर पर कनेर, गुड़हल के पौधे लगाकर रोड की सजावट की जाती है।अस्पताल में अलंकृत बागवानी लगाने पर अस्पताल सुंदर दिखाई देते हैं रोगियों को शुद्ध वातावरण प्राप्त होने से राहत मिलती है।
(2) आर्थिक लाभ -
आज के समय में फूल एक आमदनी का साधन बन गया है।इनको इसी रूप में या इनसे मालाएं, गुलदस्ते, कंगन आदि बनाकर तथा फूल वाले पौधों को गमलों में उत्पन्न करके बेचने से अच्छी आय प्राप्त हो जाती है।चंपा व चमेली के फूलों का प्रयोग हाथ की कलाइयों एवं बालों में महाराष्ट्र तथा दक्षिण भारत की स्त्रियां प्रयोग करती हैं। फूलों की मालाओं का प्रयोग शादियों, स्वागत समारोह आदि में मुख्य रूप से किया जाता है।
त्योहारों एवं धार्मिक उत्सवों पर फूलों का प्रयोग देवी - देवताओं के सम्मुख अर्पण करने में किया जाता है।सुगंधित तेल व्यवसाय का विकास तो अलंकृत बागवानी पर ही निर्भर करता है।
भारत में लगभग 1100 ऐसे पौधे हैं जिनसे तेल निकाला जाता है, जिसका प्रयोग सुगंधित एवं दवाओं में किया जाता है।लगभग दो-तीन करोड रुपए मूल्य के आवश्यक तेल प्रतिवर्ष विदेशों में भेजे जाते हैं।
तेलों के अलावा केवड़ा, चंपा, गुलाब का इत्र तथा केवड़ा एवं गुलाब के फूलों का पानी भी तैयार किया जाता है, इन सब चीजों से लगभग 20 करोड़ रुपए प्रति वर्ष मिलता है।
(3) मनोरंजन के लिए -
आज के समय में मनुष्य का जीवन दिन प्रतिदिन व्यस्त एवं कठोर होता जा रहा है। मनुष्य सुबह घर से निकलता है और शाम को ही घर वापस आता है और वह अपने को कार्य करने के बाद थका महसूस करता है।जिस प्रकार से भूख मिटाने के लिए भोजन आवश्यक है उसी प्रकार थकान मिटाने के लिए "उद्यान" आवश्यक है।
उद्यान से थकान दूर हो जाती है तथा इस कार्य क्षमता में वृद्धि होती है।आज के समय में शहर के बड़े-बड़े लोग जो दिन भर कठिन परिश्रम में व्यस्त रहते हैं।
वे लोग सुबह - शाम पार्क आदि में टहलने के लिए जाते है।पार्कों में रंग बिरंगे फूलों की मनमोहक छटा उनकी थकान दूर कर देती है। जिससे उनका मन प्रसन्न रहता है तथा शरीर में स्फूर्ति आ जाती है।
(4) आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व -
भारत में अधिकांश फूल वाले पौधों का आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व भी है। कदंब के वृक्ष का संबंध भगवान कृष्ण से है, गीता में इसका वर्णन विशेष रूप से मिलता है।ढाक के लाल पुष्प का संबंध भगवान बुद्ध से है।नीलकमल के फूल का भगवान विष्णु से तथा कचनार का लक्ष्मी जी के साथ संबंध है।पुष्पों का प्रयोग मंदिरों में पूजा के लिए किया जाता है।
देवी देवताओं को पुष्प अर्पण करना एक प्राचीन परंपरा है जो अभी भी चल रही है। दक्षिण भारत में उगाये जाने वाले फूलों का प्रयोग अधिकांश पूजा अर्चना में किया जाता है।
(5) औषधीय महत्व -
भारत में प्राचीन काल से ही आयुर्वेदिक पद्धति से रोगों का उपचार किया जाता है और रोग जल्दी ठीक भी हो जाते हैं। औषधीय पौधों का प्रयोग पागलपन, मंदबुद्धि, मिर्गी आदि रोगों को दूर करने में किया जाता है।बहुत से पौधों एवं फूलों का प्रयोग जड़ी-बूटी बनाकर विभिन्न प्रकार के रोगों को दूर करने में किया जाता है। नीम, तुलसी, आंवला आदि औषधीय पौधों के भागों से आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां, होम्योपैथिक और एलोपैथिक औषधियों का निर्माण किया जाता है।
(6) मृदा संरक्षण -
पेड़ पौधों की जड़े मिट्टी तो अच्छी तरह बांधे रखती हैं इसके साथ ही पत्तियां बर्षा की बूंदों का प्रभाव कम करती है। जिसके कारण मृदा कटाव नहीं होता है।खाली पड़ी भूमि में अलंकृत पौधों को लगाकर मृदा कटाव को रोका जा सकता है। इसके लिए हरसिंगार का पौधा विशेष उपयुक्त माना जाता है। अधिक मात्रा में अलंकृत पौधे लगाने से बरसात में मृदा कटाव को रोका जा सकता है।
(7) पर्यावरण की शुद्धता -
विभिन्न कारणों जैसे बढ़ती हुई जनसंख्या, उद्योगों, अस्पतालों, मोटर वाहनों आदि के कारण वायुमंडल अधिक प्रदूषित हो रहा है जिसका सीधा प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।ऐसी स्थिति में अलंकृत बागवानी में अधिक से अधिक पौधे लगाकर वातावरण को प्रदूषिण रहित बनाया जा सकता है।
पौधे सूर्य के प्रकाश द्वारा अपना भोजन बनाते हैं।
पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड गैस को ग्रहण करके ऑक्सीजन गैस को बाहर निकालते हैं। जो मनुष्य के जीवन के लिए अति आवश्यक है। वातावरण में फैले प्रदूषण को स्वच्छ करने में पेड़ पौधे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(8) प्रायोगिक महत्व -
विभिन्न प्रकार के शैक्षणिक छात्र - छात्रा अपने प्रयोग व अध्ययन हेतु विभिन्न उद्यानों की सैर कर वनस्पतियों के अध्ययनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
खासतौर से एग्रीकल्चर के छात्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे। उन्हें उद्यानों में विभिन्न प्रकार के पौधों के साथ प्रयोग करने को मिल रहा है। जिससे उनकी पढ़ाई पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
अलंकृत बागवानी का भविष्य
भारत में पुष्प उत्पादन का भविष्य बहुत ही उज्जवल है। भारत में पूरे साल फूलों की खेती की जा सकती है, क्योंकि भारत की जलवायु पुष्प उत्पादन के लिए उपयुक्त है।दूसरे भारत की भूमि में विभिन्न प्रकार के फूल सुगमता से उगाए जा सकते हैं।
जब दूसरे देशों की भूमि बर्फ की चादर ओढ़े रहती है वहां पर फूल उगाना असंभव हो जाता है, उस समय भारत में विभिन्न प्रकार के पुष्प सुगमता से उगाए जा सकते हैं।जैसे फूलों को विदेशों में भेजकर विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकती है।
भारत में विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु उपलब्ध है, जिनमें लगभग सभी प्रकार के शोभाकारी वृक्ष, झाड़ियां, लताएं और मौसमी फूलों को बड़ी आसानी से उगाया जा सकता है।
अलंकृत पौधों को सुखी भूमि से लेकर दलदली भूमि में उगाया जा सकता है। इसके साथ ही मैदानी क्षेत्रों से लेकर पर्वतीय क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। भारत में हर मौसम में रंग बिरंगे फूलों की खेती की जा सकती है।
भारत के कई राज्यों जैसे - कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र आदि में फूलों की खेती व्यापारिक स्तर पर की जा रही है। बड़े-बड़े शहरों जैसे कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, मुंबई आदि में "फूलों के बाजार" देखने योग्य हैं, क्योंकि इन शहरों में फूलों के बाजार अत्यधिक सजावटी तरीके से लगाये जाते हैं।
इन बड़े शहरों में 10,500 टन कटे फूल (कट फ्लावर) बेचे जाते हैं, जिनका मूल्य 9.26 करोड़ रुपए है।
1967 मे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक सर्वेक्षण के आधार पर यह बात एकदम स्पष्ट हो गई कि सभ्यता के विकास के साथ साथ फूलों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है।
भारत में अलंकृत बागवानी का उज्जवल भविष्य निम्न प्रकार दिखाई दे रहा है -
(1) फूलों के निर्यात में दिन प्रतिदिन मांग बढ़ रही है, जिससे अधिक आय और विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकती है।
(2) नए-नए नगरो, शहरों, उद्योगों, उद्यानों आदि का विकास हो रहा है, जिनमें अलंकृत पौधों की मांग होना स्वाभाविक है।
(3) आजकल बाजार में फूल, माला, बुके, कट फ्लावर आदि की मांग में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिससे अलंकृत बागवानी का होना अति आवश्यक है।
(4) आजकल बाजार में खुशबू वाले फूलों जैसे गुलाब, मोगरा, चमेली, रजनीगंधा, गेंदा आदि की बहुत मांग है।
(5) आजकल बाजारों में अच्छी किस्म वाले फूलों के बीजों की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है। खासतौर से खुशबू वाले फूलों की।
(6) फूलों के अर्क का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन, साबुन व क्रीम आदि बनाने में बहुत तेजी से हो रहा है।
(7) घरों, होटलों व प्रतिष्ठानों में बोनासाई की मांग तेजी से बढ़ रही है।
(8) गुलाब के फूलों का प्रयोग गुलाब जल, इत्र और क्रीम आदि बनाने में किया जाता है और भविष्य में भी इसकी मांग बहुत तेजी से हो रही है।
(9) फूलों का उत्पादन वर्ष भर होते रहने से किसानों की आय में वृद्धि होती है। अतः किसानों को वर्ष भर आय प्राप्त होती रहती है।
(10) फूलों का प्रयोग है बाजारों में अनेक प्रकार की सामग्रियों को बनाने में किया जाता है। जिससे भविष्य में फूलों की मांग बाजार में बहुत तेजी से बढ़ रही है।
अलंकृत बागवानी से मिलते जुलते कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. भारत के प्रमुख शोभाकारी उद्यानों के नाम एवं वे कहां स्थित है लिखिए?
उत्तर - भारत में स्थित प्रमुख शोभाकारी उद्यान -
1. वृंदावन उद्यान -मैसूर
2. मुगल गार्डन - दिल्ली
3. निशांत गार्डन - श्रीनगर
4. पालीवाल पार्क - आगरा
5. रामनिवास पार्क - जयपुर
6. लाल बाग - बैंगलोर
7. शालीमार गार्डन - श्रीनगर
8. कमला नेहरू पार्क - मुंबई
9. बाॅटनिकल गार्डन - ऊटी
10. हैंगिंग गार्डन - मुंबई
11. नेशनल बाॅटनिकल गार्डन - लखनऊ
12. नेशनल बाॅटनिकल गार्डन - कोलकाता
13. ताज गार्डन - आगरा
प्रश्न 2. मध्य प्रदेश में स्थित प्रमुख शोभाकारी उद्यान लिखिए?
उत्तर - मध्य प्रदेश में स्थित प्रमुख शोभाकारी उद्यान -
1. गांधी पार्क - ग्वालियर
2. कमला पार्क - भोपाल
3. नेहरू पार्क - इंदौर
प्रश्न 3. किन्ही चार छायादार वृक्षों के नाम लिखिए?
उत्तर - छायादार वृक्षों के नाम -
1. गुलमोहर का पेड़
2. बरगद का पेड़
3. कदम्ब का पेड़
4. सीता - अशोक का पेड़
5. आकाशनीम का पेड़
6. नीम का पेड़
7. पीपल का पेड़
8. आम का पेड़
9. शीशम का पेड़
10. बकुल का पेड़
प्रश्न 4. किन्ही दो कांटेदार झाड़ियों के नाम लिखिए?
उत्तर - कांटेदार झाड़ियों के नाम -
1. देशी गुलाब
2. गुलाब रातरानी
3. रुक्मणी
4. चमेली
5. मदनमस्त
6. थूजा
7. बौगेनविलिया
8. एकलीफा
प्रश्न 5. वृक्षावली किसे कहते हैं?
उत्तर - वृक्षों के बिना कोई भी उद्यान पूर्ण में नहीं होता है। उद्यानों में वृक्षों का उपयोग हर तरफ जैसे - सड़क के किनारे, जलाशयों के चारों ओर और जहां विशेष आकर्षण अंग होते हैं, वहां किया जाता है, इसे ही वृक्षावली कहते हैं। उद्यानों में वृक्षों का उपयोग सुंदर फूलों के लिए तथा छाया के लिए शोभादार पत्तियों के लिए किया जाता है।
प्रश्न 6. बेल या लताएं क्या है?
उत्तर - ऐसे पौधे, जिनके तने सीधे नहीं होते हैं और वह किसी वस्तु का सहारा पाकर आगे बढ़ते चले जाते हैं। ऐसे पौधे बेल या लताएं कहलाते हैं।